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शनिवार, 6 अगस्त 2011

मुफलिसी और मै

मुफलिसी और मै परस्पर एक दुसरे के पर्यायवाची है | चाहे आप मुझे टाटाओ से मिलवा दो चाहे अम्बानियो से मिलवा दो चाहे मित्तलो से, दलालों से, हवालो से या फिर कलालो से इस देश मे जितने भी पूंजीपति है उन सबको 
मै अपनी एक सिद्धि के दम पर मुफलिस बनाने की क्षमता रखता हु | अरे साहब मै तो कहता हु सब के सब कण कण को तरसेंगे और दर दर भटकेंगे | अरे उन्हें भी पता चल जाएगा की हमारे पुरखो में कितना दम था जो हमें उधार लेकर उसे न लौटाने की सिद्धि देकर गए है | और हम भी हमारी सूझबुझ,लगन, प्रयास और कुशलता से इस 
सिद्धि मे और भी परिपक्व हो गए है |  




हम तो इस कला को ऐसी नफासत से निभाते है की देने वाले को पता भी नहीं चलता की कब उसकी जेब से रुपय्या हमारी जेब में आ गया है हमने तो उधारी की परिभाषा ही बदल दी है| ठीक उसी प्रकार जैसे हमारी 'सश्य श्यामल भूमि 'के ' जन गन मन ' को पता ही नहीं चलता की कब उनका पैसा लाल बत्ती से होता हुआ स्विस बैंक पहुँच गया है | बस फर्क है तो इतना की हम पैसा क़र्ज़ समझकर लेते है और वो फ़र्ज़ समझकर लेते है बाकी  उस पेसे को लौटाना दोनों के ही सवभाव में नहीं है 
खैर मै तो अपनी ही बात करूँगा क्यों की ना तो मै सफ़ेद पोश हु और नहीं मेरे पास लालबत्ती है , भई अपन तो थोड़े बदनाम है पर आज भी इंसान है और इसी बात का शुक्र है की आदमखोर नहीं बने वरना क्या पता कब कुत्ते की मौत मरते |
तो अपना तो ऐसा है की शुरू से ही बड़ो की दुआ, ईश्वर का आशीर्वाद और पिताजी की कृपा से शक्ल भी इतनी 
मनहूस मिली है की सहानुभूति के चक्कर में आसानी से उधार मिल जाता है | वैसे भी उधार लेने के मूल में एक 
गहरा दर्शन है और वो है आशावादिता क्यों की व्यक्ति यदि आशावादी नहीं है तो जिंदगी के झमेलों और रोज़गार के अभाव में ही आत्महत्या कर सकता है पर हमारे संस्कार इतने मजबूत रहे है की कितनी ही समस्याए आजाए हम कभी आत्महत्या नहीं करेंगे क्योकि हमें पता है की उधार तो मिल ही जाएगा और सही मायनो में इसे ही कहते है कमाकर खाना | आप इतिहास उठाकर देख लीजिये जो धारा के विपरीत चला है वो ही 
महापुरुष बना है और मै उसी राह पर हु क्यों की प्रवाह के विरुद्ध हु | हर इंसान में क़ाबलियत होती है बड़ा बनने की बस थोड़ी सी बेशर्मी, निर्ल्लज्ज्ता,घाघपन और लंम्पटता हो तो क्या कुछ नहीं किया जा सकता बस हौंसला 
बना रहे | 
               लोग बेचारे आज पैसो के चक्कर में नौकरिया कर रहे है, भ्रष्टाचार कर रहे है, राजनीति कर रहे है, चोरिया कर रहे है, डाके डाल रहे है, ज़ेबे काट रहे है दिन रात लगे हुए है की किसी तरह जीवन सफल हो जाए पर हम आज भी बेरोजगार, बेफिक्र और शांत है क्योकि हमें यकीं है खुद पर हमारी प्रतिभा पर हमारे तरीके पर और ये तो आप जानते है की शिवखेडा ने कहा है की 'जितने वाले कोई अलग काम नहीं करते बस हर काम को अलग तरीके से करते है ' इसलिए हम निश्चिन्त है  |

हालांकि आज मै इस सिद्धि और वर्षो की मेहनत को आपसे साझा करूँगा क्योकि मै समजता हु की ज्ञान बांटने 
से बढ़ता है | एक आम भारतीय होने के नाते मै इतना ज़रूर बताना चाहूँगा की दोस्तों आप अपने जीवन भर की 
कमाई से भी विश्व भ्रमण नहीं कर सकते पर उधारी वो कला है जो आपको विश्व तो क्या ब्रह्माण्ड भ्रमण करवा सकती है | जब हमारे देश को क़र्ज़ की ज़रूरत पड़ती है तो हम अमेरिका से लाते है अगली बार रूस से फिर कही और से ठीक उसी प्रकार जब मुझे क़र्ज़ लेना हो तो पहले इस शहर से ....फिर अगले शहर से ...और फिर अगले और इसी प्रकिया में मै पूरा भारत भ्रमण कर चुका हु क्यों की जिन गलियों से एक बार गुज़रे वहा 
दोबारा नहीं जा सकते बस एक मात्र यही उधारी की सीमा है ......बाकि तो पूरा ब्रह्मांड अपना है तो दिल खोलकर उधार मांगो यहाँ नहीं तो वहा मिलेगा | दोस्तों जिंदगी बहुत खुबसूरत है तो भागदौड की बजाए इसे ख़ुशी से और 
मौज से बिताओ क्योकि मृत्यु अटल है |

                                                         और जब हम मौत की तरफ ही भाग रहे है तो रो रो कर नहीं बल्के हँस हँस के भागो उधार तो मिलता ही रहेगा ये शाश्वत सत्य है |
अब मुझे भी कही उधार लेने जाना है ..........................मै चलता हु |
                                                                                                               नमस्कार

                                                                                                        श्री सुनील कुमार पाटीदार 
                                                                                                           मोब:- ९८२७०४३१४९



5 टिप्‍पणियां:

  1. वाह!! बहुत अच्छा लिखते हैं आप. लिखते रहें इसी तरह.
    एक सलाह देना चाहूंगी, यदि आप चाहें तो अपने ब्लॉग-पेज़ का रंग बदल दें. काले रंग पर सफ़ेद अक्षर पढते समय आंखों को बहुत तक़लीफ़ देते हैं :)

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  2. सुनील जी...... कृपया सफ़ेद पर काले अक्षरों में लिखिए ...... पढ़ने में असुविधा हो रही है .

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  3. हा हा!! अब तक तो भारत कम्पलीट कर लिया होगा....अच्छा हुआ आपकी नजर में अभी कनाडा नहीं आया है. :)

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