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बुधवार, 3 अगस्त 2011

"भेरू दादा और पान की दुकान"


                                                                        "मंहगाई, भष्टाचार,लूट, डकैती,अपहरण,रीश्वत,कालाबाजारी इन सभी घटिया शब्दों के उचित प्रयोग से भारत बनता है "
ये शब्द चोराहे की पान की दुकान पर उधार की बीडी के अंतिम कश लगाते हुए भेरू दादा ने कही | वहा खड़े भेरू दादा के अत्यंत निजी एवं
सिमित समझ के ग्रामीण मित्रो ने दादा के हाव भाव देख कर उनकी प्रशंसा की, हालांकि वे बेचारे दादा की बात नहीं समझ सके थे |
भारत देश में पान की दुकान का बड़ा महत्त्व है,एक बार मुह में बीडी या बीड़ा जाने के बाद एक -एक शब्द मानो मोती झर रहे हो |
     हम भारतवासी इतने रसीक है की चिंतन चाहे आद्यात्मिक हो या  सांस्क्रतिक उसका सही अवलोकन तो पान की दुकान पर ही करते है |
ये एक ज्ञान का मंदिर है जहा ज्ञान मुफ्त मिलता है,यहा हर तबके, हर सम्प्रदाय के लोग आते है ज्ञान देते है और चले जाते है | कुछ लोग
ज्ञान लेने भी आते है और उसको जीवन में उतारने का भरसक प्रयास भी करते है | यह वो पावन स्थल है जहा युवाओ के लिए अश्लील शिक्षा
का कच्चा माल भरपूर मात्रा में सहज रूप से  उपलब्ध है | पान की दुकान पर ही तय होता है की कब किसे छेड़ना है और कब किसे भगाना है
भारत में प्रेम विवाह यही की देन है |
कई लोग घर से झगड़कर भी यहा आश्रय पाते है | कुछ छिप छिप कर भी आते है, कुछ रसीक होते है और रंगीन मिज़ाज बाकि बचे कुछ
आदतन कुछ गैर आदतन और कुछ फोकटिये | हर मोसम में ये प्राणी पान की दुकान के आसपास पाए जाते है | ऐसा कहा जाता है की
सच्चे भारतीय यही बनते है |
अब हम बात करते है, एक अद्वितीय प्रतिभा की जिसे भेरू दादा कहा जाता है | .............भेरू दादा अत्यंत ज्ञानी, विद्वान, महापुरुष, और
हर विषय पर अपना स्वतंत्र मत रखने वाले सच्चे राष्ट्रभक्त है ऐसा सिर्फ वे स्वयं सोचते है | दादा केवल राजनीती बल्के विज्ञान, दर्शन, कला
साहित्य और खेल जैसे गंभीर विषयों पर भी पकड रखते है और इतना सब इन्होने पान दुकान पर ही सिखा है | दादा ने अपनी तमाम उम्र
सर्वजनहिताय पान की दुकान पर ही व्यतीत की है | दादा करने से ज्यादा कहने में विश्वास रखते है अतः रोज़ शाम पान की दुकान पर ये अपने
वक्तव्य देते है और मित्र ताली बजाते है | देश की गंभीर समस्याओं पर चिंतन और मनन के बाद हालात को दोषी ठहराने और गलती देश के
माथे मढ़कर स्वयं को दोष मुक्त करने की कला भेरू दादा में कूट कूट कर भरी हुई है इसीलिए दादा सिमित क्षेत्र में, श्रेष्ठ वक्ता और बोलचाल में
अधिवक्ता भी कहलाते है |
दादा की इस स्वतंत्र अभिव्यक्ति की खुली बाटली पर सिर्फ उनकी महिष नयन पत्नी ही ढक्कन लगा सकती है जो उन्हें दहेज के साथ मुफ्त
मिली है दादा मुख्य रूप से दहेज में विश्वास रखते है सो मज़बूरी वश उन्हें पत्नी को भी साथ लाना पड़ा क्यों की भारत में दहेज के साथ पत्नी देने की भी परम्परा है इसीलिए दादा दकियानूसी मान्यताओं के खिलाफ है |
दादा भाषण देने के अलावा वक्त का सही उपयोग करने के लिए प्रेम भी करते है | यदी इनकी पत्नी को छोड़ दिया जाए तो मोह्हले की सभी
ओरतो के साथ दादा ने स्वप्नलोक में धारावाहिक प्रेम किया है और ये सब पान की दुकान की ही देन है | अंतिम प्राप्त सुचना तक दादा की
जीवन भर की उपलब्धी उनका बेटा है जहा दादा ने संघर्षमय पौरुष के दम पर अपने होने का एहसास दिलाया और इस देश को एक भेरू दादा
और दिया जिसके लिए सम्पूर्ण भारतवर्ष सदियों तक उनका ऋणी रहेगा |
देश में आज़ादी से पहले धडल्ले से कई लोग महापुरुष बने परन्तु आज़ादी के बाद पूंजीवाद और बाजारवाद के चक्रव्यूह में फसकर समाज दो
हिस्सों में बट गया | एक उच्चवर्ग और दुसरा निम्नवर्ग | उच्च वर्ग ने तो कई मिनी महापुरुष दिए पर साधन विहीन निम्नवर्ग उचित मार्केटिंग
पैकेजिंग और एडवरटाइजिग के अभाव में केवल भेरू दादा ही दे पाया |
जब देश में  सहस्त्रो वर्षो की आद्यात्मिक और सांस्क्रतिक परम्परा में श्रधा और विश्वास रखने वाले लोगो ने सोचा की राष्ट्र संकट में है | राष्ट्र की
अतरात्मा की रक्षा के लिए फ़िलहाल एक महापुरुष की सख्त आवश्यकता है तब उन्होंने गीता सार " काम करते रहो " को अपनाया | सब लोग
काम ....काम करते गए  तो महापुरुष तो नहीं आया बदले में करोडो दर्जन मिनी महापुरुष और भेरू दादा आगये | इसीलिए देश आज तक
विकासशील ही है कभी विकसित नहीं बन पाया |
बहरहाल दोस्तों भेरू दादा कोई शक्स नहीं बल्कि सोच है जो इन्सान के अंदर पनपती है | जो समस्याओं से घिरकर खुद को शिथिल मान लेता है , हालातो के भंवर में निर्णय नहीं ले पाता है , जो दुसरो  को दोष देता है , जो अपनी गलती नज़रंदाज़ करता है , जो काम करने की बजाए  भाषण देकर स्वयं को मुक्त कर लेता है वही इन्सान भेरू दादा बन जाता है | यह सोच राष्ट्र विरोधी है और एक आसुरी शक्ति है जो पान की
दुकान पर मिलती है |
इस सोच को बदलने से ही हम भारतीय बनेंगे क्यों की बदलाव की अपेक्षा नहीं बल्कि चेष्टा करनी पड़ती है | कहना ही नहीं बल्कि करना भी
पड़ता है क्यों की स्वर्ग पाने के लिए मरना भी पड़ता है |
                                                                     खैर........ बहुत हुआ चिन्तन
चोराहे की पान की दुकान पर कोई मेरा इंतजार कर रहा है , मै चलता हू |
                                                                                               नमस्कार

                                                                                                                                         आदरणीय श्री .......
                                                                                                                                        सुनील कुमार पाटीदार
                                                                                                                                         फ़ो - 9827043149
                                                                                                                             

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