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शनिवार, 7 जून 2014

शनिवार, 24 मार्च 2012

केवल समाचार है

आज बड़े दिनों के बाद मै अपने खालीपन से बाहर आया हु तो समस्त साहित्य प्रेमी सज्जनों से निवेदन है की
आप बहुत ही जल्दी एक नया लेख पढेंगे जो मैंने शहरी लड़की की ग्रामीण मानसिकता  पर लिखा है 

सोमवार, 5 सितंबर 2011

मै फ़ोकट हूँ !

जी हाँ साहब, आपको बताते हुए मुझे हर्ष की अनुभूति हो रही है, की मै पूर्ण रूप से एक फ़ोकट व्यक्ति हु| वैसे तो देश मे आलसी और बेकार लोगों को फ़ोकट कहा जाता है, जो की गलत है| क्योंकि लाखों नाकाम कोशिशों के बाद मैं इस शब्द को पा सका हूँ, जो की मेरे लिए भारत रत्न से ज्यादा मायने रखता है| और देश के लिए उससे भी ज्यादा | इस उपलब्धि से मेरे पुरखों की आत्मा भी आज गौरव का एहसास कर रही है, की उनके वंश मे कोई तो फ़ोकट निकला |

                                                     हमें बचपन से पढ़ाया गया है की आवश्यकता अविष्कार की जननी है, परन्तु केवल जननी किसी को पैदा करने के लिए काफी नहीं होती उसके लिए एक जनक की आवश्यकता होती है | और यदि हम इसी विषय पर गहन अध्ययन करें, तो हम पाते हैं की, किसी भी अविष्कार का जनक आलस्य  है और आलस्य रूपी ये जनक तभी आता है जब व्यक्ति पूर्ण रूप से फ़ोकट हो| यानी आज देश मे जो अविष्कार हो रहे है, जो तरक्की हो रही है उसका एक मात्र कारण है की, मैं पूर्ण रूप से फ़ोकट हूँ,| जो की देश के लिए गर्व और सम्मान की बात है |

                                  साहित्य कई वर्षों से ये शब्द समाज को देना चाहता था, पर समाज इसे लेना नहीं चाहता था| पर मेने इसे अपना  दायित्व मानकर दोनों के बीच सेतु का कार्य किया है और देश हित में इस शब्द को अपना लिया जो की वीरता और बहादुरी की अदभुत मिसाल है |

  वैसे तो कई लोग आज फ़ोकट है| परन्तु विडम्बना यह है की, वो स्वयं को फ़ोकट मानने को तैयार नहीं ,परन्तु में ये सिद्ध कर सकता हूँ की, वो भी हम जैसे ही है| क्योंकि जिस तल्लीनता और लगन से आप ये लेख पढ़ रहे है, उससे साफ़ जाहिर होता है की, आप कितने बड़े निठल्ले और घटिया स्तर के पाठक है | अर्थात आप मुझसे बड़े फ़ोकट हे| पर किसी पर कीचड़ उछालना अपनी आदत नहीं, इसलिए मैं तो कहूँगा आप जैसे भी हे बहुत अच्छे  है |  

                    अब मैं मुख्य विषय पर आता हूँ और आपको बताता हूँ की मुझे फ़ोकट बनाने में ईश्वर , प्रकृति और समाज का बहुत बड़ा योगदान है | क्योंकि इश्वर ने मुझे एक दिमाग दिया हे जिससे मेने बहुत सोचा और फिर सोचा तब इस निष्कर्ष पर पहुंचा हूँ की मुझे काम नहीं करना चाहिए वरन देशहित मे विचार करना चाहिए, तो समाज ने मुझे फ़ोकट घोषित कर दिया| अब आप स्वयं सोचो ये  गलती मेरी हे, या भगवान् की ? खैर ....... इसी सिलसिले में आगे कहूंगा की मेरा एक मित्र हे ,जब वह घर से बाहर रहता है तो उसकी चिंता उसकी बीवी करती है |तब उसे उसकी बीवी पर बड़ा प्यार आता है और जब यही चिंता मैं करता हूँ तो वो मुझे फ़ोकट बोलता है| क्या किसी की चिंता करना गलत है ? हाँलाकि में जानता हूँ कि , मैं उसे वो सुविधा नहीं दे सकता जो उसे उसकी बीवी देती है ,क्योंकि मै आदमी हूँ पर यदी मैं स्त्री होता तो उसे मना थोड़े ही करता यह तो प्रकृति का दोष है कि मुझे आदमी बनाया |इसी तरह से संसार की हर वस्तु मुझे फ़ोकट बनाने के लिए ज़िम्मेदार है | कुल मिलाकर मैं यह कहना चाहता हूँ ,कि मैं भले ही आलसी हूँ ,पर काम करने का जज्बा तो रखता हूँ , चाहे वो मैं ना करूँ | मैं देश के लिए मर मिटने का दावा कर सकता हूँ | ठाला बैठकर देश के लिए सोच सकता हूँ , फिर भी लोग मुझे फ़ोकट कहते हैं | अब मैं क्या मरुँ ? यह तो सरासर अन्याय है , अत्याचार है और इस अभागे देश के वर्तमान मैं ना जाने कितने लोग फ़ोकट शब्द को ढो रहे हैं , जिन्हें शासन कोई पारिश्रमिक नहीं देता बल्कि एक ऋण समझता है | कभी ना चुकने वाला ऋण |
                  
            हम फ़ोकट हैं , इसलिए हम ऋण हैं , चूँकि आप भी फ़ोकट हो यह तो मैं सिद्ध कर चुका हूँ , इसलिए आप भी ऋण ही हुए | तो क्यों ना हम ऋण - ऋण मिलकर धन बन जाएँ , ताकि देश के लिए कुछ कर सकें | तो आओ मिलकर हम राष्ट्रीय फ़ोकट संघ कि स्थापना करें और नित नए विचार एकत्रित करें , क्योंकि यह शाश्वत सत्य है कि समस्या से ही समाधान निकलता है और आज देश को समाधान की जरुरत है | तो सर्वप्रथम हम मिलकर देश के सम्मुख किसी समस्या को खडा करें | ताकि आने वाली पीढियां उसका समाधान खोजें , जिससे देश को एक नए दिशा मिलेगी , समाज का उद्धार होगा और हमारा नाम इतिहास के पन्नों मैं अमर हो जाएगा |

     और अंत मैं यही कहूँगा कि , जब भी राष्ट्रीय फ़ोकट संघ का अधिवेशन हो तो आपसे बाउम्मीद गुजारिश है , कि अध्यक्ष पद के लिए आप मेरा ही नाम प्रशस्त करें |
      इसी विनय के साथ आपका साथी सुनील पाटीदार |

                                                                                                सुनील पाटीदार                                                                                                                                                 0९८२७०४३१४९ 
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शनिवार, 6 अगस्त 2011

मुफलिसी और मै

मुफलिसी और मै परस्पर एक दुसरे के पर्यायवाची है | चाहे आप मुझे टाटाओ से मिलवा दो चाहे अम्बानियो से मिलवा दो चाहे मित्तलो से, दलालों से, हवालो से या फिर कलालो से इस देश मे जितने भी पूंजीपति है उन सबको 
मै अपनी एक सिद्धि के दम पर मुफलिस बनाने की क्षमता रखता हु | अरे साहब मै तो कहता हु सब के सब कण कण को तरसेंगे और दर दर भटकेंगे | अरे उन्हें भी पता चल जाएगा की हमारे पुरखो में कितना दम था जो हमें उधार लेकर उसे न लौटाने की सिद्धि देकर गए है | और हम भी हमारी सूझबुझ,लगन, प्रयास और कुशलता से इस 
सिद्धि मे और भी परिपक्व हो गए है |  




हम तो इस कला को ऐसी नफासत से निभाते है की देने वाले को पता भी नहीं चलता की कब उसकी जेब से रुपय्या हमारी जेब में आ गया है हमने तो उधारी की परिभाषा ही बदल दी है| ठीक उसी प्रकार जैसे हमारी 'सश्य श्यामल भूमि 'के ' जन गन मन ' को पता ही नहीं चलता की कब उनका पैसा लाल बत्ती से होता हुआ स्विस बैंक पहुँच गया है | बस फर्क है तो इतना की हम पैसा क़र्ज़ समझकर लेते है और वो फ़र्ज़ समझकर लेते है बाकी  उस पेसे को लौटाना दोनों के ही सवभाव में नहीं है 
खैर मै तो अपनी ही बात करूँगा क्यों की ना तो मै सफ़ेद पोश हु और नहीं मेरे पास लालबत्ती है , भई अपन तो थोड़े बदनाम है पर आज भी इंसान है और इसी बात का शुक्र है की आदमखोर नहीं बने वरना क्या पता कब कुत्ते की मौत मरते |
तो अपना तो ऐसा है की शुरू से ही बड़ो की दुआ, ईश्वर का आशीर्वाद और पिताजी की कृपा से शक्ल भी इतनी 
मनहूस मिली है की सहानुभूति के चक्कर में आसानी से उधार मिल जाता है | वैसे भी उधार लेने के मूल में एक 
गहरा दर्शन है और वो है आशावादिता क्यों की व्यक्ति यदि आशावादी नहीं है तो जिंदगी के झमेलों और रोज़गार के अभाव में ही आत्महत्या कर सकता है पर हमारे संस्कार इतने मजबूत रहे है की कितनी ही समस्याए आजाए हम कभी आत्महत्या नहीं करेंगे क्योकि हमें पता है की उधार तो मिल ही जाएगा और सही मायनो में इसे ही कहते है कमाकर खाना | आप इतिहास उठाकर देख लीजिये जो धारा के विपरीत चला है वो ही 
महापुरुष बना है और मै उसी राह पर हु क्यों की प्रवाह के विरुद्ध हु | हर इंसान में क़ाबलियत होती है बड़ा बनने की बस थोड़ी सी बेशर्मी, निर्ल्लज्ज्ता,घाघपन और लंम्पटता हो तो क्या कुछ नहीं किया जा सकता बस हौंसला 
बना रहे | 
               लोग बेचारे आज पैसो के चक्कर में नौकरिया कर रहे है, भ्रष्टाचार कर रहे है, राजनीति कर रहे है, चोरिया कर रहे है, डाके डाल रहे है, ज़ेबे काट रहे है दिन रात लगे हुए है की किसी तरह जीवन सफल हो जाए पर हम आज भी बेरोजगार, बेफिक्र और शांत है क्योकि हमें यकीं है खुद पर हमारी प्रतिभा पर हमारे तरीके पर और ये तो आप जानते है की शिवखेडा ने कहा है की 'जितने वाले कोई अलग काम नहीं करते बस हर काम को अलग तरीके से करते है ' इसलिए हम निश्चिन्त है  |

हालांकि आज मै इस सिद्धि और वर्षो की मेहनत को आपसे साझा करूँगा क्योकि मै समजता हु की ज्ञान बांटने 
से बढ़ता है | एक आम भारतीय होने के नाते मै इतना ज़रूर बताना चाहूँगा की दोस्तों आप अपने जीवन भर की 
कमाई से भी विश्व भ्रमण नहीं कर सकते पर उधारी वो कला है जो आपको विश्व तो क्या ब्रह्माण्ड भ्रमण करवा सकती है | जब हमारे देश को क़र्ज़ की ज़रूरत पड़ती है तो हम अमेरिका से लाते है अगली बार रूस से फिर कही और से ठीक उसी प्रकार जब मुझे क़र्ज़ लेना हो तो पहले इस शहर से ....फिर अगले शहर से ...और फिर अगले और इसी प्रकिया में मै पूरा भारत भ्रमण कर चुका हु क्यों की जिन गलियों से एक बार गुज़रे वहा 
दोबारा नहीं जा सकते बस एक मात्र यही उधारी की सीमा है ......बाकि तो पूरा ब्रह्मांड अपना है तो दिल खोलकर उधार मांगो यहाँ नहीं तो वहा मिलेगा | दोस्तों जिंदगी बहुत खुबसूरत है तो भागदौड की बजाए इसे ख़ुशी से और 
मौज से बिताओ क्योकि मृत्यु अटल है |

                                                         और जब हम मौत की तरफ ही भाग रहे है तो रो रो कर नहीं बल्के हँस हँस के भागो उधार तो मिलता ही रहेगा ये शाश्वत सत्य है |
अब मुझे भी कही उधार लेने जाना है ..........................मै चलता हु |
                                                                                                               नमस्कार

                                                                                                        श्री सुनील कुमार पाटीदार 
                                                                                                           मोब:- ९८२७०४३१४९



बुधवार, 3 अगस्त 2011

"भेरू दादा और पान की दुकान"


                                                                        "मंहगाई, भष्टाचार,लूट, डकैती,अपहरण,रीश्वत,कालाबाजारी इन सभी घटिया शब्दों के उचित प्रयोग से भारत बनता है "
ये शब्द चोराहे की पान की दुकान पर उधार की बीडी के अंतिम कश लगाते हुए भेरू दादा ने कही | वहा खड़े भेरू दादा के अत्यंत निजी एवं
सिमित समझ के ग्रामीण मित्रो ने दादा के हाव भाव देख कर उनकी प्रशंसा की, हालांकि वे बेचारे दादा की बात नहीं समझ सके थे |
भारत देश में पान की दुकान का बड़ा महत्त्व है,एक बार मुह में बीडी या बीड़ा जाने के बाद एक -एक शब्द मानो मोती झर रहे हो |
     हम भारतवासी इतने रसीक है की चिंतन चाहे आद्यात्मिक हो या  सांस्क्रतिक उसका सही अवलोकन तो पान की दुकान पर ही करते है |
ये एक ज्ञान का मंदिर है जहा ज्ञान मुफ्त मिलता है,यहा हर तबके, हर सम्प्रदाय के लोग आते है ज्ञान देते है और चले जाते है | कुछ लोग
ज्ञान लेने भी आते है और उसको जीवन में उतारने का भरसक प्रयास भी करते है | यह वो पावन स्थल है जहा युवाओ के लिए अश्लील शिक्षा
का कच्चा माल भरपूर मात्रा में सहज रूप से  उपलब्ध है | पान की दुकान पर ही तय होता है की कब किसे छेड़ना है और कब किसे भगाना है
भारत में प्रेम विवाह यही की देन है |
कई लोग घर से झगड़कर भी यहा आश्रय पाते है | कुछ छिप छिप कर भी आते है, कुछ रसीक होते है और रंगीन मिज़ाज बाकि बचे कुछ
आदतन कुछ गैर आदतन और कुछ फोकटिये | हर मोसम में ये प्राणी पान की दुकान के आसपास पाए जाते है | ऐसा कहा जाता है की
सच्चे भारतीय यही बनते है |
अब हम बात करते है, एक अद्वितीय प्रतिभा की जिसे भेरू दादा कहा जाता है | .............भेरू दादा अत्यंत ज्ञानी, विद्वान, महापुरुष, और
हर विषय पर अपना स्वतंत्र मत रखने वाले सच्चे राष्ट्रभक्त है ऐसा सिर्फ वे स्वयं सोचते है | दादा केवल राजनीती बल्के विज्ञान, दर्शन, कला
साहित्य और खेल जैसे गंभीर विषयों पर भी पकड रखते है और इतना सब इन्होने पान दुकान पर ही सिखा है | दादा ने अपनी तमाम उम्र
सर्वजनहिताय पान की दुकान पर ही व्यतीत की है | दादा करने से ज्यादा कहने में विश्वास रखते है अतः रोज़ शाम पान की दुकान पर ये अपने
वक्तव्य देते है और मित्र ताली बजाते है | देश की गंभीर समस्याओं पर चिंतन और मनन के बाद हालात को दोषी ठहराने और गलती देश के
माथे मढ़कर स्वयं को दोष मुक्त करने की कला भेरू दादा में कूट कूट कर भरी हुई है इसीलिए दादा सिमित क्षेत्र में, श्रेष्ठ वक्ता और बोलचाल में
अधिवक्ता भी कहलाते है |
दादा की इस स्वतंत्र अभिव्यक्ति की खुली बाटली पर सिर्फ उनकी महिष नयन पत्नी ही ढक्कन लगा सकती है जो उन्हें दहेज के साथ मुफ्त
मिली है दादा मुख्य रूप से दहेज में विश्वास रखते है सो मज़बूरी वश उन्हें पत्नी को भी साथ लाना पड़ा क्यों की भारत में दहेज के साथ पत्नी देने की भी परम्परा है इसीलिए दादा दकियानूसी मान्यताओं के खिलाफ है |
दादा भाषण देने के अलावा वक्त का सही उपयोग करने के लिए प्रेम भी करते है | यदी इनकी पत्नी को छोड़ दिया जाए तो मोह्हले की सभी
ओरतो के साथ दादा ने स्वप्नलोक में धारावाहिक प्रेम किया है और ये सब पान की दुकान की ही देन है | अंतिम प्राप्त सुचना तक दादा की
जीवन भर की उपलब्धी उनका बेटा है जहा दादा ने संघर्षमय पौरुष के दम पर अपने होने का एहसास दिलाया और इस देश को एक भेरू दादा
और दिया जिसके लिए सम्पूर्ण भारतवर्ष सदियों तक उनका ऋणी रहेगा |
देश में आज़ादी से पहले धडल्ले से कई लोग महापुरुष बने परन्तु आज़ादी के बाद पूंजीवाद और बाजारवाद के चक्रव्यूह में फसकर समाज दो
हिस्सों में बट गया | एक उच्चवर्ग और दुसरा निम्नवर्ग | उच्च वर्ग ने तो कई मिनी महापुरुष दिए पर साधन विहीन निम्नवर्ग उचित मार्केटिंग
पैकेजिंग और एडवरटाइजिग के अभाव में केवल भेरू दादा ही दे पाया |
जब देश में  सहस्त्रो वर्षो की आद्यात्मिक और सांस्क्रतिक परम्परा में श्रधा और विश्वास रखने वाले लोगो ने सोचा की राष्ट्र संकट में है | राष्ट्र की
अतरात्मा की रक्षा के लिए फ़िलहाल एक महापुरुष की सख्त आवश्यकता है तब उन्होंने गीता सार " काम करते रहो " को अपनाया | सब लोग
काम ....काम करते गए  तो महापुरुष तो नहीं आया बदले में करोडो दर्जन मिनी महापुरुष और भेरू दादा आगये | इसीलिए देश आज तक
विकासशील ही है कभी विकसित नहीं बन पाया |
बहरहाल दोस्तों भेरू दादा कोई शक्स नहीं बल्कि सोच है जो इन्सान के अंदर पनपती है | जो समस्याओं से घिरकर खुद को शिथिल मान लेता है , हालातो के भंवर में निर्णय नहीं ले पाता है , जो दुसरो  को दोष देता है , जो अपनी गलती नज़रंदाज़ करता है , जो काम करने की बजाए  भाषण देकर स्वयं को मुक्त कर लेता है वही इन्सान भेरू दादा बन जाता है | यह सोच राष्ट्र विरोधी है और एक आसुरी शक्ति है जो पान की
दुकान पर मिलती है |
इस सोच को बदलने से ही हम भारतीय बनेंगे क्यों की बदलाव की अपेक्षा नहीं बल्कि चेष्टा करनी पड़ती है | कहना ही नहीं बल्कि करना भी
पड़ता है क्यों की स्वर्ग पाने के लिए मरना भी पड़ता है |
                                                                     खैर........ बहुत हुआ चिन्तन
चोराहे की पान की दुकान पर कोई मेरा इंतजार कर रहा है , मै चलता हू |
                                                                                               नमस्कार

                                                                                                                                         आदरणीय श्री .......
                                                                                                                                        सुनील कुमार पाटीदार
                                                                                                                                         फ़ो - 9827043149
                                                                                                                             

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